ये उन दिनों की बात है,
जब आँखों से होती थी बातें |
वो शर्माती थी और बावरा मन था मचलता,
क्लास में पढ़ते कम थे और मुस्कुराते ज्यादा |
दिवाली की छुट्टियाँ आईं,
साथ में तन्हाईयाँ लाईं |
अच्छाई से बुराई हारी,
पर मेरी किस्मत हुई धराशाई |
जो छुट्टियाँ ख़त्म हुई,
चेहरे पर मुस्कान आई |
अरसों बाद उन्हें देखने का मौका था जो मिला,
क्लास पहुंचा तो उन्ही शर्माती हुई आँखों को पाया |
कुछ कह न सका बस देखता रहा,
शब्दों का इस्तमाल बेमानी जो था |
जो गौर किया तो यह मालूम पड़ा,
उन्होंने भी रात भर तारों को गिना |
ये उन दिनों की बात है,
जब आँखों से होती थी बातें |